शादी के लिए जब रिश्ते वालो से बातो चल रही थी , और "मेहर की रकम " पर बात हुई तो मैंने कहा
की "मेहर की रकम " को लेकर मेरी राय भी मानी जाये | मेरी मर्जी से रकम तय होगी , जिसे माफ़
नही किया जाएगा , क्योकि ये मेरा हक़ है | मेरी बात सुनकर घर और बाहर के सभी लोग तो ऐसे देखने
लगे की ये कोई बात हुई भला , मेहर की रकम को लेकर खानदान के बुजुर्ग ही बात करते है | ये रकम
तो उस वक़्त औरत को मिलती है | जब उसका शौहर उसे तलाक दे देता है और ऐसा कोई दिन तेरी
जिंदगी में ना आये |
कोई नया रिवाज नही पड़ेगा | अब यहा और ऐसे किसी रुपये का तू क्या करेगी ...रीमा |
मै बरेली के भोजीपुरा ब्लॉक में बसे घंघौरा - घंघौरी गॉव में रहती हू | अब्बा मजदूरी करते है , मै १९ की हू
अब और घर में कारचोबी करके थोड़ा बहुत रुपया कम लेती हूँ | जिससे वालिद को थोड़ा सहारा मिल जाता है |
कारचोबी के काम के अलावा मै गॉव में सात सालो से काम कर रही एक संस्था साकार के किशोरी समूह 'महक'
से जुडी हूँ | साकार मुस्लिम और दलित समुदाय के लिए काम करती है और साथ ही में
कौम की किसी ' रीति - रिवाज़ों ' को जान ये समझने और समझने की कोशिश करती हूँ |
कि कहीं कोई रीत औरतो पर हिंसा का कारण तो नही बन रही |
साकार की किशोरी समूह ' महक ' में बैठक और प्रशिक्षण के जरिये मेहर , इस्लामी तलाक , बाल विवाह , प्रज़नन , स्वास्थ्य , जेंडर , महिला ,हिंसा व् इसके अलावा सिलाई , कढ़ाई , ब्यूटीशियन आदि के बारे में सिखाने के साथ ही हम्मरी समझ विकसित कि जाती है |