• sakar.s@rediffmail.com
  • 08449710687

Community

घर से शुरू की अपने हक की लड़ाई!

प्रह्लादपुरए भोजीपुरा विकासखंड का एक गाँव हैए जहाँ दलित एवं मुस्लिम परिवार रहते हैंण् साकार द्वारा यहाँ महिलाओं को किशोरियों के साथ उनके विकास को लेकर पिछले दो साल से कार्य किये जा रहे हैंण् वहां महिलाओं का भी संगठन है और किशोरियों का भीण् किशोरियों के साथ प्रजनन स्वास्थ्य और नेतृत्व को लेकर सघन रूप से काम हैए जिसमें खेलकूद का एक अलग ही महत्व है |

शहनशां बी इस तरह के एक किशोरी समूह हैंण् शहनशां बी के पिता बहुत ही रूढ़िवादी सोच वाले हैं और उसकी मां मुल्लानी हैं जो कि बच्चों को कुरान पढ़ाती हैंण् शहनशां ने कक्षा 8 तक पढ़ाई की हैं पर आगे वह नही पढ़ पायीए क्यूंकि पास पड़ोस वालों से उसे नही पड़ने दियाए वो घर वालों के कान भरते और मज़हब का हवाला देतेण् शहंशाह अपना मन मसोस कर रह जातीण् दिया गया। किशोरी मीटिंग के दौरान शहनशां के माता पिता से इस बावत चर्चा भी की गयीए पर वो नही समझेण् स्पोर्ट्स कैंप के एक आयोजन के एक आयोजन में प्रतिभाग करने के लिए उनसे कई बार बात की गयीए जिस पर वो मान गयेण् फिर बात आई कैंप में पहने जाने वाली ड्रेस पर भी उसके घर में काफी चर्चा हुईण् शहनशां रोज़ घर के कपड़ों में आती और कैंप में कपडे बदलतीण् डर और झिझक ने उसका पीछा न छोड़ाण् उसकी छोटी बेहें भी वैसा ही करतीण् कैंप के तीसरे दिन शहनशां ने अपनी छोटी बेहें को स्पोर्ट्स ड्रेस ही पहन कर जाने को कहाण् डरते डरते घर पहुँचने पर उसके अब्बा के उसे बहुत सुनाया और कहा की उनके समाज में इसकी इजाज़त नही थीण् शहनशां से चुप न रहा गया और उसने पूच्छा की उन कपड़ों में क्या बुराई थी और वह क्यूँ यह ड्रेस नही पहन सकतेण् उसके पिता को यकीन नहीं हुआ की आज उनकी बेटी उनसे सवाल कर रही हैण् यह एक शुरुवात थीए अपने हक़ को समझने और बात करने कीण् अभी तो मंजिल दूर हैए लेकिन शहनशां ने दस्तक दे दी है !

नेतृत्व से दी अपने गाँव को पहचान !

जावित्रीए 52 वर्ष दलित समुदाय की महिला हैं जो कि अपने परिवार के साथ ब्लाॅक भोजीपुरा, ग्राम दभौरा में रहती है। जावित्री के पति डोरी लाल खेती का काम करते हैं जावित्री के 6 बच्चे हैं 3 लड़का व 3 लड़की। जावित्री ने 3 बच्चों की शादी कर दी हैं। जावित्री की आर्थिक स्थिति मध्यम हैं वह अपने परिवार के साथ खुशी से अपने परिवार का जीवन व्यतीत कर रही हैं। जावित्री के बच्चे पढ़ते हैं व बड़ा बेटा मजदूरी करता हैं। उनके परिवार में कोई भी जावित्री को रोकने वाला या समस्या खड़ी करने वाला नहीं हैं। इसलिए जावित्री अपने परिवार से सन्तुष्ट हैं उन्हें किसी प्रकार का संघर्ष नहीं करना पड़ता हैं। जावित्री ने दलित व मुस्लिम समुदाय के हक को दिलवाने हेतु संघर्ष किया इसी को देखते हुए जावित्री को संगठन के बारे में बताया और उन्हें संगठन से जोड़ा। जावित्री संगठन की एक जिम्मेदार व सक्रिय सदस्य के रूप में जुड़कर संगठन की जिम्मेदारी निभा रही हैं।

जावित्री जी की सक्रियता को देखते हुए 2010 में ग्राम प्रधान के चुनाव में S.C की सीट निकलकर आयी तब संगठन को बताया कि अपने संगठन का लीड़र होना चाहिए। संगठन की तरफ से जावित्री को प्रधान पद पर खड़ा जाना चाहिए। संगठन के सहयोग से जावित्री को संगठन ने प्रधान पद के लिए खड़ा कर दिया और जावित्री को एक साथ मिलकर चुनाव लड़ाया पर किन्ही कारणों से जावित्री चुनाव हार गयी। जावित्री को O.B.C. का वोट न मिल सका।

Read More

अंजली बनी अपने गाँव की लीडर!

अंजली करमपुर चैधरी गांव में रहने वाली 14वर्षीय किशोरी है। पिता का नाम- श्री राकेश और माता का नाम - श्रीमती धम्ममित्रा है।

गांव में ही एक स्कूल कुवंर रंजीत सिंह कन्या इण्टर कालेज से 9वीं पास की है। अंजली के दो भाई और एक बहिन है। सभी बहिन-भाई शिक्षा प्राप्त कर रहे है। अंजली के पिता सिंचाई विभाग में कार्यरत है तथा उसकी मां महिला शक्ति संगठन की लीडर है और घर में भी गृहिणी का काम करती है।

अंजली को जब किशोरी मंच के बारे में पता चला तो वह सोच रही थी कि पता नहीं इसमें क्या होगा। क्योंकि पहले वह काफी शर्मीले स्वभाव की थी किसी के सामने तो क्या घर में भी अपने मन की बात किसी से नहीं कहती थी। कभी भी घर से बाहर खेली नही, बाहर जाने-आने में उसमें बहुत झिझक थी।

अंजली को नहीं पता था कि उसके शरीर अचानक में बदलाव क्यों हो रहे है? उसे नहीं पता कि किशोरावस्था में किशोरियों को किन-किन समस्याओं से गुजरना पड़ता है।

Read More

संगठन से मिली पहचान !

जीवन परिचय - सुनीता दलित परिवार से हैं और बंगाल की रहने वाली हैं। वह 8वीं पास हैं। सुनीता का विवाह ग्राम लटूरी भोजीपुरा ब्लाॅक, जिलाए बरेली में हुई हैं। सुनीता के 2 लड़के व 2 लड़कियांे के साथ पति के साथ रहती हैं। सुनीता विकलांग हैं। सुनीता का पति अनपढ़ हैं। सुनीता अपने पति के सारे काम स्वयं ही करती हैं। उसको देखकर यह अहसास भी नहीं होता कि वह विकलांग हैं। सुनीता की एक बेटी का विवाह भी हो चुका हैं।

सुनीता के जीवन में कई सारी चुनौतियां आयी। सबसे बड़ी चुनौती उसके परिवार से मिली क्योंकि सुनीता का परिवार नहीं चाहता था कि सुनीता मीटिंग या बैठकों में जाये परन्तु सुनीता को जुनून सवार था परिवार के सहयोग न करने पर भी उसने साकार से अपना साथ बनाये रखा और हमेंशा सहयोगी की भावना से अपना व दूसरों का सहयोग करते हुए जीवन यापन कर रही हैं। सुनीता का साकार के साथ का सफर 8 वर्षो से अधिक का हो चुका हैं इस कारण वह बहुत जागरूक महिला हो चुकी हैं जब सभी ने सुनीता के कार्यो को देखा तब सभी ने उसका सहयोग करना शुरू किया व सुनीता को गम्भीरता से लेना शुरू किया। सुनीता ने पंचायत में भी अपना कदम रखा, चुनौती आयी पर वह अडिग बनी रही।

सुनीता आज अपने गांव में एक सम्मानित महिला हैं। वह महिला शक्ति संगठन की पदाधिकारी के पद पर व अपने गांव में वार्ड मेम्बर के पद पर कार्य कर रही हैं। सुनीता अपने जीवनयापन के लिए राशन की दुकान भी चलाती हैं व समय - समय पर बैठकों में प्रतिभाग कर गांव के मुद्दे महिला हिंसा, सरकारी योजना आदि पर लोगों को लेकर तहसील व ब्लाॅक पर ज्ञापन भी देती हैं और महिला हिंसा के केसों को लेकर महिलाओं के साथ पैरवी करती हैं। महिलाओं को वह अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने हेतु प्रेरित करती हैं। आज के समय में सुनीता इतनी सक्षम हो चुकी हैं कि वह स्वयं अपने व दूसरों से मुद्दों पर पैरवी करती हैं। परिवार के स्तर पर तो संघर्ष जारी हैए पर ग्रामवासियों से सुनीता को अब पूर्ण सहयोग मिलता हैं।

Sunita(30 Years)'s Story

Sunita (30 Years) from village from Pipalsana got married to Harprashad When she was 14. After marriage she had three children; 2 daughters and 1 son. Her husband never let her go anywhere and always doubted her. She was a victim of domestic violance. She was very poor and there was no support from her husband . She collected wood from the forest and earned her living Gradually she became associated with SAKAR and learnt many things, making her aware informed and confident to take on her struggles.

With SAKAR's efforts Sunita came to know about labour registration and got a labour identity card made. Then se started visiting other village and identified those village and identified those people who were eligible for labour card Read More

Khatoon's Story

hatoon belongs to the Muslim community in village Ittowa Kedarnath of Bhojipura block, in district Bareilly. She is an active member of the SMC and worked a lot in her village to improve the condition of mid-day meal in her village. She also tried to engage with the block and get some benfits but there was no hindrance which she realized. The hindrance was that she was illitrate. SAKAR started a literacy centre in the village, but Khatoon thought

that she was aged enough to read and write... so she did not go to the centre and refused. After much persusion, She agreed and after the first day she went, she had to face a lot criticism and sarcastic remarks from the community. She again sat at home! The centre facilitator again met her and explained her the merits of being literate. The only thing which kept her going Khatoon was the support from her family. Once Khatoon learnt to write her name(Which took a long time), but finally she did. There was no looking back then and till date she continues Read More

Story Of Girl

When the girls heard that a sports day was being organized in the village, they were thrilled. They had seldom seen girls play and the thought was just a passing one. Seening the boys play in open, in groups and shout away their excitement was a regular site.But, we were affraid, we hesitated being able to play in open and 'enjoy' . The elders said that the girls were- grown ups! But, the coordinator had told the girls that it was lack of confidence that led to the girls being oppressed and that is why there was inequality too. Meetings at the village level had helped the girls to learn cricket, kabbadi and relay race.

The grand day arrived and all the girls played in open, in village Dohna, with support from the pradhan Faiyaaz khan, who was there to supprt SAKAR. All men, boys Read More

मेहर की रकम है ये मेरा हक़

शादी के लिए जब रिश्ते वालो से बातो चल रही थी , और "मेहर की रकम " पर बात हुई तो मैंने कहा की "मेहर की रकम " को लेकर मेरी राय भी मानी जाये | मेरी मर्जी से रकम तय होगी , जिसे माफ़ नही किया जाएगा , क्योकि ये मेरा हक़ है | मेरी बात सुनकर घर और बाहर के सभी लोग तो ऐसे देखने लगे की ये कोई बात हुई भला , मेहर की रकम को लेकर खानदान के बुजुर्ग ही बात करते है | ये रकम तो उस वक़्त औरत को मिलती है | जब उसका शौहर उसे तलाक दे देता है और ऐसा कोई दिन तेरी जिंदगी में ना आये |

कोई नया रिवाज नही पड़ेगा | अब यहा और ऐसे किसी रुपये का तू क्या करेगी ...रीमा | मै बरेली के भोजीपुरा ब्लॉक में बसे घंघौरा - घंघौरी गॉव में रहती हू | अब्बा मजदूरी करते है , मै १९ की हू अब और घर में कारचोबी करके थोड़ा बहुत रुपया कम लेती हूँ | जिससे वालिद को थोड़ा सहारा मिल जाता है | कारचोबी के काम के अलावा मै गॉव में सात सालो से काम कर रही एक संस्था साकार के किशोरी समूह 'महक' से जुडी हूँ | साकार मुस्लिम और दलित समुदाय के लिए काम करती है और साथ ही में कौम की किसी ' रीति - रिवाज़ों ' को जान ये समझने और समझने की कोशिश करती हूँ | कि कहीं कोई रीत औरतो पर हिंसा का कारण तो नही बन रही | Read More

हम है किशोरी समूह कि लडकिया

" अपने गांव को एक चार्ट पर उतारना मतलब मानचित्र बनाना है इसका " किशोरी समूह " सितारा " की हम सभी लडकिया ने जब हमारी संध्या दीदी कि ये बात सुनी तो सभी हँसने लगी | अपने ' इतने बड़े ' गांव को कागज़ पर कैसे बना सकते है भला ! फिर सबने एक - एक पेँसिल पकड़ , गांव कि गलियो , हमारे स्कूल , पंचायत और उन्ही गलियो में अपने - अपने घरो में कारचोबी करती अम्मा और बहनो को महसूस करना शुरू किया तो सच में गांव का नक्शा तैयार होने लगा फिर वो गालिया भी बनायीं जहा हम छोटे थे तो खेलने जाते थे , अब तो बस घर और उसके आस -पास ही सहेलिया संग घूम पाते है |

अम्मी उन दूर गलियो में जाने नही देती .... कहती है कि सयानी हो गयी हो ... और वह जाने से भी डर लगता है | गांव के मनचले लड़के बैठे रहते है वहाँ झुण्ड बनाकर | अम्मी ठीक ही मन करती है शायद | हम उस गुलाबी कागज़ पर अपना गांव बना ही रहे थे , कि अचानक शू... कि आवाज़ करता हुआ हवाईजहाज़ हमारे सर के ठीक ऊपर से गुजरा , और आसमान में उड़ते पक्षियों Read More

वो कुछ लोग !

चौराहा पर बनी इस छोटी सी चौकी में मै खड़ी हूँ | अब अपने मम्मी पापा और कुछ लोगो के साथ मम्मी पापा ने इसके साथ मिलके निकाला है मुझे उनके घर से ..| बहुत भीड़ है यहाँ और कुछ लोग कैमरा से मेरा फोटो खींच रहे है | कुछ बात कर रहे है कि "इतना बड़ा अधिकारी एक छोटी सी लड़की को अगवा किये रहा एक साल तक और किसी को कानो - कान भनक तक नही लगी | " नाम बताओ अपना ...? मैं मम्मी से चिपकी खड़ी सबको देख ... समझने की कोशिश कर रही हूँ की ' पुलिस ' ने पूछा | मैंने मम्मी की तरफ देखा सहमे - सहमे , तभी ' उन कुछ लोगो ' में से जो मम्मी के साथ मुझे 'छुड़ा ' लाए

यहाँ ...., एक औरत प्यार से हाथ फेर बोली मुझसे ....'बिना डरे अपना नाम और जो भी हुआ है ना तुम्हारे साथ , सब बता दो |' रूपाली .... मैंने हलके से बोला | क्या उम्र है ? .... उन्होंने फिर पूछा ...., 'नौ साल' ,..... इस बार मम्मी ने बताया | .... मैं या मम्मी , जो जवाब देती वो उसे एक कागज़ पर लिखने लगते | कैसे पहुंची सर के घर ? उन्होंने अब ये सवाल किया वो सब याद करके मुझे रोना आ रहा है , लेकिन अब डर नही लग रहा , बहादुरी से मैं उन्हें सब बता रही हूँ | हम बहुत गरीब है | मेरे पापा रणधीर , मम्मी, मैं और चार भाई -बहन सब अपना देस 'बंगाल ' को छोड़के यहाँ बरेली आ गए |.... तभी मम्मी ने उन्हें बोला , साहब ! हम डेढ़ साल पहले यहाँ आये , मजदूरी करत रहे यहाँ , "ग्रीन पार्क " कॉलोनी में ...| Read More

ताड़ा गांव

परिचय- यह कहानी जनपद बरेली के क्यारा ब्लॉक स्थित गंगा किनारे बसे ताड़ा गांव की है |
मुददा- ब्याज के आये पैसों को नाजायज मानने के कारण समूह बनते टूटते रहते थे | क्योंकि इनके धर्म में ब्याज को नाजायज माना जाता है |

प्रक्रिया- ग्राम ताड़ा में पिछले ५ वर्षोँ से कार्य चल रहा है, जिसमें ब्याज लेना ग़लत मानने के कारण कई बार समूह बनकर टूटता रहा जिसके बाद गांव में समस्त स्टाफ़ के साथ एक बड़ी बैठक का आयोजन किया, जिसमें परियोजना प्रबन्धक द्वारा समूह के ब्याज के सही उपयोग पर बात की ब्याज लेना ग़लत है किन्तु उसका उपयोग अश्व कल्याण के कार्यों में करने से उस पैसे का सही उपयोग हो सकता है फिर सभी की रजामंदी से वहां पर समूह गठन किया गया | जिसकी अब तक बचत ३७९३०, कुल अश्व कल्याण में कर्ज़ १२७७०० वापसी ८२२०० शेष ४५५०० ब्याज जिसका उपयोग सामूहिक कार्यों में किया जा रहा है और दण्ड २१० हो चुका है |

निष्कर्ष- (१-४) १- ब्लॉक के ९ गांवों का एक्सपोजर से समूह गठन |
२- गाँव में एक नया समूह गठन |
३- अश्वों के सामूहिक कार्यों में मदद |
४- रख- रखाव में सुधार आया |

Himani is saved from Child Marriage

Hello, I am Himani from Pachdaura village. I am studying in class VI.I thankful to Sakar with whose support I continue my schooling. Soon after completing my class V, my parents wanted get me married. I was not interested in marriage. I wanted to study further and become a teacher. Being a member of adolescent girl’s group, I shared my problems to my peers during school sensitization programme organized by SAKAR. The issue was then taken to the women’s alliance (Mahila Shakti Sangathan). The leaders and members of Sakar met my father and explained to him the ill effects of early marriage, especially its adverse impact on my health. They made him know that the legal age of marriage of a girl is 18 years and also discussed about the importance of education to girl. My father then dropped the plan of my marriage and encouraged me to study.

LHP बना भगवान, बचाई घोड़े की जान

परिचय- बरेली जनपद के ब्लॉक फरीदपुर में स्थित नारायण पशु चिकित्सालय के LHP आकाश ब्रुक संस्था की देख - रेख में पिछले दो वर्षोँ से इलाज कर रहें हैं |
मुददा- शाम को ५ बजे इक्स्टेंसिव साईट से तड़प रहे पशु मालिक का फोन आया | उक्त केस पर VACM महेंद्र पाल व LHP आकाश ने VO की मदद से घोड़े का इलाज किया |

प्रक्रिया- इक्स्टेंसिव साईट से शाम को ५ बजे पेट दर्द के केस को देखने के लिए VACM महेंद्र पाल और LHP आकाश साईट पर गये | वहाँ घोड़े की स्थिति बहुत ख़राब थी और घोड़ा जमीन पर लोट-पोट करता हुआ मिला, जिसे देख LHP आकाश ने VACM की मदद से दर्द निवारक दवा दी एवं सेलाइन मिश्रण का भी प्रयोग किया | उसके बाद घोड़े को कुछ आराम हो गया और VACM, LHP लौट आये | फिर बाद में रात को ७ बजे फोन आया की घोड़े की स्थिति फिर से ख़राब हो रही है तो पुनः बरसात में VACM और LHP साईट पर गये |

अब VACM को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें , फिर उसने VO बरेली को फोन किया और उनके सुझाव के द्वारा LHP आकाश ने मल द्वार का परीक्षण किया , जिसमें उन्हें कोई ठोस पदार्थ महसूस हुआ | फिर VO के सुझाव द्वारा एनीमा किया गया जिसके कारण वो ठोस पदार्थ धीरे-धीरे कर के मल द्वार के द्वारा बाहर आ गया और घोड़े को बहुत आराम मिला |

निष्कर्ष- (१-५) १- सामूहिक प्रयास से घोड़े की जान बची |
२- LHP का आत्मविश्वास बढ़ा |
३- LHP का विभिन्न केस में सक्रीय भागेदारी बढ़ गयी |
४- LHP अब VACM और VO से सलाह लेने लगा |
५- LHP अब घोड़े के केस को आत्मविश्वास से देखने लगा |

सावरी समूह में ब्याज से हुआ पशुओ का बीमा

परिचय - जनपद बरेली के क्यारा ब्लाॅक के टांडा में कुल 71 पशु व 48 पशु मालिक हैं। इस गांव में बरसात में सर्रा बीमारी से बहुत घोड़ो की मृत्यु होती थी। टांडा में पिछले 3 साल से सावरी महिला अश्व कल्याण स्वयं सहायता समूह चल रहा हैं, जिसका ब्याज 22010 रू0 हैं।

मुद्दा - पहले हर साल घोड़े के मर जाने से बहुत सारे लोग बेरोजगार हो जाते थे।

प्रक्रिया - ग्राम टांडा जिसमें 3 महिला समूह का गठन किया जा चुका हैं और 2 समूह छत्स्ड भी अनुदान पा चुके हैं, इस गांव के तीनों समूह ब्लाॅक की बनी महिला शक्ति समिति से जुड़े हैं, जिसकी मीटिंग ब्लाॅक में करने से सरकारी योजनाओं की जानकारी व लाभ मिलता हैं। समिति की मीटिंग में ब्लाॅक डा0 अजय कुमार द्वारा बीमा की जानकारी प्राप्त की गयी। इसके उपरान्त च्ड विजय कृष्ण तिवारी द्वारा समय-समय पर समूह की मीटिंग में बीमा की जानकारी मिलते रहने से समूह के लोग ट।ब्ड प्रीती से बीमा करवाने की बात करने लगे। हर साल इस गांव में बहुत सारे घोड़ो की मृत्यु हो जाती हैं। अब तक यहां 22 घोड़ो का बीमा हो पाया हैं।

जिसको बरसात के कारण पैसों के अभाव में जिस ब्याज को वह नाजायज मानते हैं। इसी के ब्याज से 300-300 निकालकर 22 घोड़ों का बीमा किया गया।

Read More

NRLM के पैसा का हुआ सद्पयोग

परिचय - यह कहानी बरेली जिले के बहेड़ी ब्लाॅक के राजूनगला ग्राम की हैं। इस गांव में 23 अश्व पालक व 25 घोड़े निवास करते हैं। इस गांव में एक महिला व एक पुरूष समूह का गठन किया गया हैं।

मुद्दा - अश्व पालकों को भट्ठा सीजन समाप्त हो जाने पर कोई काम न मिल पाने के कारण भुखमरी का शिकार होना।

प्रक्रिया - राजूनगला में गठित महिला अश्व कल्याण की कोषाध्यक्ष बिसमिल्लाह के परिवार में उनका पति, एक बेटा, चार बेटियां हैं।

भट्ठा सीजन बन्द हो जाने पर आर्थिक अभाव के कारण आये दिन परिवार में कलह होती थी। एक दिन समूह की मीटिंग में पता चला कि पति-पत्नी में आर्थिक अभाव के कारण कलह होती हैं। NRLM योजना का पैसा आया हुआ हैं। आप चाहो तो अपने पति को नया व्यवसाय करा सकते हो। बिसमिल्लाह के पति को बुला कर उनसे बात करके उन्हें कपड़े का व्यवसाय करने की सलाह दी गयी। इसके लिए उन्हें समूह से रू0 10,000 देकर कपड़े खरीदवाये गये।

Read More

© 2016 SAKAR All Rights Reserved

Powered By - LM Softech